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ये कविता आज के इस युग मैं हो रहे रंग एवं आर्थिक भेद के ऊपर हें |
ये कविता सन्देश देती हें की कोई गरीब, अमीर, गोरा एवं काला नहीं हें, बल्कि सब इंसान हें |
ज़िन्दगी के रंग देखो,
कहीं कोई हें गरीब,
तो कहीं कोई अमीर ,
बस इतना ही क्यूँ सोचो |
ज़िन्दगी के रंग हें अनेक,
उसमें से मैंने चुना एक,
इस रंग से दिखती सारी दुनिया एक,
न कोई काला और न कोई सफ़ेद |
इस दुनिया से ये रंग हें,
इन रंगों से ये दुनिया नहीं,
इस दुनिया मैं हर कोई इंसान है
परन्तु कोई भी गरीब और अमीर नहीं |
ज़िन्दगी के सारे रंगों मैं,
सबसे प्यारा इंसानियत का रंग हें
ये रंग हर कोई पैदाइश के साथ लाता हें,
और मौत के साथ ले जाता हें |
आज की इस ज़िन्दगी मैं,
मानवता के रंगों से होली नहीं खेली जाती,
आज के इस युग मैं होली के नाम पर याद,
सिर्फ लाल रंग की ही आती |
आओ इस रंगों के भेद से,
ऊपर उठ कर बात करें,
हम साथ थे और साथ हें
यही बात कह कर इंसानियत के रंग
का प्रचार करें |
!! जय हिंद !!
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